Thursday, May 17, 2012

ग़ज़ल: ०४

ग़ज़ल: ०४
मस्त आँखों के सहारे जी रहे है
जैसे दरिया में किनारे जी रहे है.

हुनर कुछ खोज कर दे दे मौला
जीतकर हम भी हारे जी रहे है.

हाल ए दिल कुछ ऐसा हो गया है.
ख्वाब ए दिल बहुत सारे जी रहे है.

दूर होकर पास है मेरे वो आज भी
इस आसमां में जैसे तारे जी रहे है.

दिल की दुनिया है छोटी सी अयान
इसमें भी टूटे सितारे जी रहे है.

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