Sunday, May 20, 2012

ग़ज़ल :१२

ग़ज़ल :१२
 
कुछ राज छिपाए है सम्हलता हुआ चेहरा.
अच्छा नहीं लगता है बदलता हुआ चेहरा,

चेहरों में है नकाब यहाँ इस कदर लगे हुए
तूफ़ान को समेटे है ये बहलता हुआ चेहरा,

सच्चाई देखी हमने जब भी सूरमाओं की
मोम सा  दिखता है पिघलता हुआ चेहरा 

मासूम निगाहें है और चुपचाप है ये लब
हर रात में जलता है दहलता हुआ चेहरा

बर्फ की तासीर को हम समेटे हुए यहाँ
बेमौत मर रहा है फिसलता हुआ चेहरा

हर बच्चा सहम जाता है जब देखता उसे
अँधेरे से खौफनाक निकलता हुआ चेहरा

बड़ा हो गया है तो बड़प्पन को साथ रख
भाता नहीं अयान ये मचलता हुआ चेहरा



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