Tuesday, May 22, 2012

ग़ज़ल :१४

ग़ज़ल :१४

साहिल में सूना सा एक घर बना है.
आकाश में फैला अँधेरा भी घना है

दिन में इन आँखों को सुकून दे देना
यहाँ पूरी रात ही तुमको जागना है

बस्तियों में नकाबपोश है आये
सेवा करके मांग लो जो माँगना है

इस आँगन में तुम ना करो हलचले
यहाँ पे पुराना सा खोखला तना है

मर्यादाओं की सीमा नशेडी हो गयी
सौख से लान्घिये जिनको लांघना है

जख्मो में अयान संक्रमण है फैलता
अच्छा होने के लिए सीना मना है

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