Thursday, May 17, 2012

ग़ज़ल:०५ ;

ग़ज़ल:०५ ;

आँधी आई तो डर गए पत्ते.
शाख से यूँ बिखर गए पत्ते.

ढूँढने ज़िन्दगी के लम्हों को.
किस किसके घर गए पत्ते

ये मुकद्दर भी रेत जैसा है
बयां खुल के कर गए पत्ते

हार जीत के रिवाजों में आज
ख़त्म किस्सा कर गए पत्ते

वख्त ने हरा दिया उनको भी
कोशिश करके मर गए पत्ते

एक इबादत करने के लिए
यहाँ दो फूल धर गए पत्ते

अयान ग़मगीन माहौल को
मेरे हवाले कर गए पत्ते.


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