Monday, October 26, 2015

मै अंधेरों में निवास करता रहा.

रहमत की तलाश करता रहा.
तुम पे ही विश्वास करता रहा.
दर्द को समझने वाले सनम.
क्यों खुद को उदास करता रहा.
अपनी आदत से मजबूर रहा.
सच कहने का प्रयास करता रहा.
रोक पायेगा कौन हौसलों को.
इन्हे ऊंचा अकाश करता रहा.
तुम्हे ताउम्र उजाले नसीब हो.
मै अंधेरों में निवास करता रहा.
ंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंं
बातें हुयी भी चाय से गाय तक.
यह देश यूं विकास करता रहा.
धर्म के ठेकेदार मौज उड़ाते रहे.
वो देश का विनाश करता रहा.
हम राम का कद बढ़ा नहीं सके.
रावण कद विकास करता रहा.
राजनीति का ऐसा चक्रव्यूह रहा.
नेता सबको हताश करता रहा.

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